आज की प्रेरणा प्रसंग

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आज की प्रेरणा प्रसंग

अनुपम अवस्थी

सच्चे दोस्त

मोहन अचानक उन चारों को होटल में बैठा देख कर हड़बड़ा सा गया…. अरे ये तो मेरे स्कूल के दोस्त है।राजू, किशन, जगदीश और वो आकाश है ,ये सब यहां,मिलूं क्या इन सब से , नहीं मोहन पागल है क्या ? देख इन सबको वो सभी सूटबूट मे है, लगता है कामयाब आदमी बन गए है और तू …. तू … यहां एक छोटे से होटल में एक मामूली सा वेटर, पहचानेगे भी वो और अगर पहचान भी लिया तो चारों तुझ पर हंसेंगे, नहीं मोहन नहीं।पर अब यहां ये हमारे होटल के कस्टमर है और मैं यहां का वेटर, तो आर्डर तो मुझे ही लेना और खाना भी मुझे ही परोसना होगा , खैर ….
मेरा काम है और पापा कहते थे कोई भी मेहनत वाला काम छोटा या शर्मिंदगी वाला नहीं होता । आज लगभग 15 सालों बाद मोहन के स्कूल के चारों दोस्त उसके सामने थे।मोहन ने चारों से आर्डर लिया और अपने काम को बखूबी अंजाम देते हुए खाना परोसने लगा,चारों ने उसकी और देखा तक नहीं , लगभग सभी अपने अपने मोबाइल फोन पर व्यस्त थे । पिता के आकस्मिक निधन के चलते मोहन अपनी दसवीं की पढ़ाई भी पूरी नही कर पाया था, मोहन को लगा था उसके जिगरी दोस्त उसे पहचान जाऐंगे लेकिन उन्होंने उसे पहचानने का प्रयास भी नही किया। वे चारों खाना खा कर बिल चुका कर चले गये।

मोहन को लगा उन चारों ने शायद उसे पहचाना नहीं या उसकी गरीबी देखकर जानबूझ कर कोशिश नहीं की….उसने एक गहरी लंबी सांस ली और टेबल साफ करने लगा। वो टिश्यु पेपर उठाकर कचरे मे डलने ही वाला था की उसपर कुछ लिखा हुआ सा दिखा,ओह…..शायद उन्होने उस पे कुछ जोड़-घटाया …

अचानक उसकी नजर उस पर लिखे हुए शब्दों पर पड़ी, जिस पर लिखा था – अबे साले तू हमे खाना खिला रहा था तो तुझे क्या लगा तुझे हम पहचानें नही, अबे 15 साल क्या अगले जनम बाद भी मिलता तो तुझे पहचान लेते, तुझे टिप देने की हिम्मत हममे नही थी। देख हमने पास ही फैक्ट्री के लिये जगह खरीदी है और अब हमारा इधर आन-जाना तो लगा ही रहेगा,आज तेरा इस होटल का आखरी दिन है,हमारे फैक्ट्री की कैंटीन कौन चलाएगा बे….
तू चलायेगा ना….

अबे तुझसे अच्छा पार्टनर और कहां मिलेगा,याद हैं ना स्कूल के दिनों मे हम पांचो एक दुसरे का टिफिन खा जाते थे,आज के बाद रोटी भी मिल बाँट कर साथ-साथ खाएंगे।
मोहन की आंखें भर आई, उसने डबडबाई आँखों से आसमान की तरफ देखा और उस पेपर को होंठो से लगाकर करीने से दिल के पास वाली जेब मे रख लिया…
मेरे दोस्तो…. सच्चे दोस्त वही तो होते है जो दोस्त की कमजोरी नही सिर्फ दोस्त देख कर ही खुश हो जाते है,
अच्छे दोस्त किस्मत से मिलते है
हमेशा अपने अच्छे दोस्त की कद्र करे।

*”दोस्तों दोस्त वादे नहीं करते, फिर भी हर मोड़ पे अपनी यारी निभाते है…..”.*

मोहन सोच रहा था जब कोई हाथ और साथ दोनों छोड़ देता है तो ऊपरवाला किसी ना किसी को सहारे के लिए जरूर भेज देता है ।

*सदैव प्रसन्न रहिये।*
*जो प्राप्त है,वो पर्याप्त है।।*

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